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जालंधर, पंजाब का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है। इसके नाम के पीछे कई पुराणिक कथाएं और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं, जो इसकी ऐतिहासिकता और पौराणिक महत्व को दर्शाती हैं। आइए जानते हैं कि इस शहर का नाम ‘जालंधर’ कैसे पड़ा और इसके पीछे की पौराणिक कहानी क्या है।
जालंधर का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जालंधर का नाम असुरराज ‘जालंधर’ के नाम पर पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि जालंधर एक शक्तिशाली असुर था, जो सागर से उत्पन्न हुआ था। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान शिव और पार्वती के क्रोध के कारण जालंधर का जन्म हुआ था। जालंधर बहुत शक्तिशाली था और उसने देवताओं को भी परास्त करने की क्षमता हासिल कर ली थी।
असुरराज जालंधर की कथा
जालंधर की कहानी के अनुसार, उसका जन्म भगवान शिव के क्रोध की अग्नि से हुआ था। यह भी मान्यता है कि जालंधर को वरदान प्राप्त था कि वह अजेय रहेगा। उसने इस वरदान का लाभ उठाकर इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं को पराजित करने की योजना बनाई और पूरे स्वर्ग को अपने नियंत्रण में ले लिया। लेकिन भगवान शिव ने अंततः जालंधर का संहार कर दिया और देवताओं को पुनः स्वर्ग पर शासन करने का अधिकार मिल गया।
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जालंधर नाम का अर्थ
संस्कृत में ‘जल’ का अर्थ ‘पानी’ और ‘अंधर’ का अर्थ ‘अंदर’ होता है। चूंकि यह क्षेत्र मुख्यतः नदियों और जल से घिरा हुआ था, इसलिए इसका नाम ‘जालंधर’ पड़ा, जिसका मतलब है ‘जल के अंदर’ या ‘पानी से घिरा हुआ स्थान’। प्राचीन काल में इस स्थान के चारों ओर कई नदियाँ बहती थीं, जिनमें से प्रमुख नदियाँ सतलुज और ब्यास थीं। इस कारण भी इसे ‘जालंधर’ नाम दिया गया।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
जालंधर का नाम न केवल इसके पौराणिक इतिहास से जुड़ा है, बल्कि यह क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ कई प्राचीन मंदिर और गुरुद्वारे स्थित हैं, जो इस शहर को धार्मिक रूप से समृद्ध बनाते हैं। गुरु नानक देव जी, संत कबीर और अन्य संतों ने इस भूमि पर अपने विचारों का प्रचार किया और इसे एक आध्यात्मिक केंद्र बनाया।
आधुनिक जालंधर और इसका महत्व
वर्तमान समय में जालंधर एक प्रमुख औद्योगिक और शैक्षणिक केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है। खेल के सामानों के उत्पादन में यह शहर दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इसके अलावा, यहाँ के शैक्षणिक संस्थान भी उत्तरी भारत के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं।
जालंधर का नाम उसके पौराणिक और भौगोलिक दोनों ही पहलुओं से जुड़ा हुआ है। एक ओर असुरराज जालंधर की कथा इसे ऐतिहासिक महत्व प्रदान करती है, तो दूसरी ओर इसका भौगोलिक स्थिति भी इसके नामकरण का एक कारण है। इस तरह, जालंधर का नाम हमें इसकी प्राचीनता, संस्कृति, और धार्मिकता से जोड़ता है।