Tankri Lipi (टांकरी लिपि) : एक परिचय
हिमाचल की पहाड़ी वादियों में बसी टांकरी लिपि एक ऐसी लेखन कला है, जो कभी इस क्षेत्र की भाषाओं और संस्कृति की आत्मा थी। यह लिपि, जिसे टकरी भी कहते हैं, ब्राह्मी परिवार की शारदा लिपि से जन्मी है और हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में भी इसका इस्तेमाल होता था। चंबियाली, डोगरी, और सिरमौरी जैसी पहाड़ी भाषाओं को लिखने के लिए यह लिपि सदियों तक जीवित रही। लेकिन आज यह धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरे में खो रही है। आइए, इस लिपि की कहानी को करीब से जानें।
Tankri Lipi (टांकरी लिपि) का इतिहास: एक प्राचीन यात्रा
टांकरी लिपि का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। यह शारदा लिपि का एक रूप है, जो कश्मीर में संस्कृत और कश्मीरी भाषा के लिए प्रचलित थी। हिमाचल की रियासतों में टांकरी का उपयोग राजकीय दस्तावेजों, मंदिरों के रिकॉर्ड, और व्यापारिक बही-खातों में होता था। कुल्लू के एक परिवार के पास आज भी टांकरी में लिखी रामायण की पांडुलिपियां मौजूद हैं, जो इस लिपि की समृद्धि का सबूत हैं। सिरमौर और चंबा जैसे क्षेत्रों में यह लिपि अलग-अलग रूपों में दिखती थी, जिन्हें स्थानीय लोग “लुंडे” या “मुंडे” अक्षर कहते थे।
टांकरी और गुरुमुखी लिपि का भी खास रिश्ता है। गुरु अंगद जी ने सिख धर्म के लिए गुरुमुखी लिपि को टांकरी के आधार पर ही विकसित किया था। दोनों में कई अक्षर मिलते-जुलते हैं, लेकिन गुरुमुखी समय के साथ अधिक लोकप्रिय और मानकीकृत हो गई।
सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक
टांकरी लिपि सिर्फ अक्षरों का समूह नहीं, बल्कि हिमाचल की पहचान का हिस्सा है। पुराने दस्तावेजों में लिखी कहानियां, मंदिरों के शिलालेख, और भूमि के रिकॉर्ड आज भी इस लिपि के महत्व को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, बिलासपुर के स्वारघाट में एक पुराना टांकरी दस्तावेज “ठाकुर द्वारा” ने एक कानूनी विवाद को सुलझाने में मदद की। यह लिपि 2017 की पंजाबी पहाड़ी फिल्म सांझ में भी नजर आई, जिसके शीर्षक और क्रेडिट्स ने इसे आधुनिक दर्शकों तक पहुंचाया।
टांकरी लिपि हिमाचल की लोक कथाओं, गीतों, और परंपराओं को सहेजने का जरिया थी। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है और बताती है कि हमारी संस्कृति कितनी समृद्ध थी।
Tankri Lipi (टांकरी लिपि) की चुनौतियां
आज टांकरी लिपि लगभग गायब हो चुकी है। देवनागरी और अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव ने इसे पीछे धकेल दिया है। स्कूलों में इसे पढ़ाया नहीं जाता, और नई पीढ़ी को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। पुरानी पांडुलिपियां अब संग्रहालयों या कुछ परिवारों तक सीमित हैं। लेकिन इस लिपि को बचाने की उम्मीद अभी बाकी है।
Tankri Lipi (टांकरी लिपि) को बचाने के प्रयास
हिमाचल में टांकरी लिपि को फिर से जीवंत करने की कोशिशें जोरों पर हैं। कुछ खास कदम इस तरह हैं:
- प्रशिक्षण शिविर: हिमाचल भाषा और संस्कृति विभाग ने मंडी के पनारसा में नवंबर 2024 में 10 दिन की कार्यशाला आयोजित की, जहां युवाओं ने टांकरी सीखी और इस पर लेख लिखे।
- डिजिटल फॉन्ट: धर्मशाला का संगठन ‘सांभ’ टांकरी के लिए डिजिटल फॉन्ट बना रहा है, ताकि इसे ऑनलाइन इस्तेमाल किया जा सके।
- पांडुलिपि संरक्षण: राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत हिमाचल में 1.26 लाख पांडुलिपियों को डिजिटाइज करने का काम चल रहा है, जिनमें टांकरी में लिखी पांडुलिपियां भी शामिल हैं।
- गुरु-शिष्य परंपरा: हरिकृषन मुरारी जैसे विशेषज्ञ टांकरी को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं।
Tankri Lipi (टांकरी लिपि) सीखने का महत्व
टांकरी लिपि सीखना सिर्फ अक्षरों को समझना नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ना है। यह लिपि इतिहासकारों, भाषाविदों, और संस्कृति प्रेमियों के लिए एक खजाना है। इसके अलावा, टांकरी विशेषज्ञों की मांग डिजिटाइजेशन और अनुवाद के क्षेत्र में बढ़ रही है। यह लिपि सीखकर आप न केवल अपनी विरासत को बचा सकते हैं, बल्कि एक अनोखा करियर भी बना सकते हैं।
🌍 टकरी लिपि का भौगोलिक उपयोग
टकरी की कई उप-शाखाएँ हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में विकसित हुईं:
क्षेत्र | उप-लिपि | प्रमुख भाषा |
---|---|---|
जम्मू | डोगरा टकरी (Dogra Akkhar) | डोगरी |
चंबा | चंब्याली टकरी | चंब्याली |
कांगड़ा | कांगड़ी टकरी | कांगड़ी |
कुल्लू | कुल्वी टकरी | कुल्वी |
कश्मीर | कश्मीरी टकरी | कश्मीरी |
🔤 टकरी वर्णमाला (Tankri Alphabet)
टकरी लिपि में स्वर (Vowels) और व्यंजन (Consonants) दोनों के लिए विशेष चिह्न होते हैं। इसमें कुल मिलाकर लगभग 40+ वर्ण होते हैं।

Tankri Lipi (टांकरी लिपि) कैसे सीखें?
- स्थानीय कार्यशालाएं: चंबा, शिमला, और कुल्लू में आयोजित होने वाले प्रशिक्षण शिविरों में हिस्सा लें।
- ऑनलाइन संसाधन: टांकरी लिपि से जुड़ी वेबसाइट्स और ब्लॉग्स, जैसे कि टांकरी लिपि ब्लॉग, जानकारी दे सकते हैं।
- पांडुलिपि अध्ययन: स्थानीय संग्रहालयों या अकादमियों में टांकरी दस्तावेजों का अध्ययन करें।
आइए, Tankri Lipi (टांकरी लिपि) को जीवित रखें
टांकरी लिपि हिमाचल की सांस्कृतिक आत्मा का हिस्सा है। इसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। एक छोटा सा कदम, जैसे कि कार्यशाला में शामिल होना या इस लिपि के बारे में दूसरों को बताना, इसे जीवित रख सकता है। तो आइए, इस गुमनाम धरोहर को फिर से रोशनी में लाएं!
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